महर्षि वाग्भट आयुर्वेद के महान ऋषि हुए जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन वैदिक सिद्धांतों पर जीते हुए आयुर्वेद के विकास विस्तार के लिए काम किया, बहुत सारे शोध किये उन्हें जांचा परखा और जों चीज़ सत्य पायी उसे सरल शब्दों में अपने दो ग्रंथों में लिखा | आपके द्वारा लिखे गए वो दो ग्रन्थ हैं – अष्टांग हृदयम तथा अष्टांग संग्रह |
अष्टांग हृदयम ग्रन्थ में महर्षि वाग्भट नें प्रारंभ में ही आयुर्वेद इन आठ मुख्य अंगों की चर्चा की है जिसपर महर्षि वाग्भट के इलावा महर्षि आत्रेय, महर्षि पुनर्वसु, महर्षि सुश्रुत आदि सहित कई अन्य ऋषियों नें भी बहुत काम किया है | आयुर्वेद के ये आठ अंग एक आम जनमानस को आयुर्वेद को समझने में उसको सरलता व सुविधा प्रदान करते हैं | तो आइये हम आज अष्टांग आयुर्वेद पर कुछ चर्चा करते हैं -
अष्टांग आयुर्वेद का पहला अंग है – काय चिकित्सा
“कायचिकित्सा” जिसका अर्थ है सामान्य रोगों की चिकित्सा | आजकल की शैली में बात करें तो इसका अर्थ हुआ जनरल (General Treatment) जिसमें ज्वर (बुखार), अतिसार (दस्त), रक्तपित्त (अंदरूनी रक्त / खून का रिसाव), शोष (सूखापन), कुष्ठ (कोढ़), उन्माद (पागलपन) और अपस्मार (मिर्गी) जैसे बहुत सारे रोगों की चिकित्सा को रखा गया है |
अष्टांग आयुर्वेद का दूसरा अंग है – बालरोग
“बालरोग” जिसका अर्थ है बच्चों की रोगों से रक्षा उनके विकास और पोषण तथा उनको होने वाले रोगों की चिकित्सा की पूरी विधा और पद्धति को बालरोग चिकित्सा कहा गया है |
अष्टांग आयुर्वेद का तीसरा अंग है – भूत विद्या
“भूत विद्या” जिसमे किसी की शरीर की ऊर्जा बिगड़ जाती है जिसमें ऊसपर किसी अच्छी बुरी कई तरह की ऊर्जा का प्रभाव पड़ जाता है जैसे उसे देवता, पितृ, पिशाच या गृह बाधा आदि सताती है इन सब की चिकित्सा को भूत विद्या कहते है | इस चिकिसा का थोड़ा बहुत अंश आज भी कहीं-कहीं हनुमान जी महाराज के मंदिरों में देखा जा सकता है परन्तु बहुत जगह आजकल इसके नाम पर लोगों को ठगा भी जा रहा है और भरमाया भी जा रहा है, इसलिए सबको सावधान भी करने की आवश्यकता है | ऐसी बाधा ज्यादातर उस व्यक्ति को सताती है जिसकी स्वयं की ऊर्जा बहुत कमजोर हो और वह किसी ऐसी खराब ऊर्जा के संपर्क में आये |
अष्टांग आयुर्वेद का चौथा अंग है – शालाक्य तंत्र
तंत्र का अर्थ होगा है प्रणाली या सिस्टम (System) और
“शालाक्य तंत्र या चिकित्सा” आयुर्वेद का वो अंग है जिसमें आँख, नाक, कान, मुख के अन्दर का हिस्सा और गले के रोगों की चिकित्सा करी जाती है | इसमें गला और गले ऊपर के सभी अंगों जैसे दिमाग आदि की चिकित्सा का वर्णन है | शालाक्य तंत्र को ऊर्ध्वांग चिकित्सा भी कहते हैं जिसका अर्थ है ऊपर के अंगों की चिकित्सा |
अष्टांग आयुर्वेद का पांचवां अंग है – शल्य तंत्र
“शल्य तंत्र” अर्थात किसी दुर्घटना में लाही चोट के इलाज, किसी तेज हथियार से लगी चोट, आग से जले, एसिड तेज़ाब से जले व्यक्ति आदि का इलाज के लिए किये जाने वाला कर्म, सर्जरी या कुछ ऐसे रोग जिसमें अंगों को निकालना ही पड़ता है या शरीर को काट कर खोल कर उसमें उस विकृति को दूर किया जाता है, उसके लिए जिस प्रकार की पद्धति अपनाई जाती है उसे शल्य तंत्र कहते हैं |
अष्टांग आयुर्वेद का छठा अंग है – अगद तंत्र
“अगद तंत्र” को दंष्ट्रा भी कहते है जिसका अर्थ है जीवों के डसने काटने पर जैसे सर्प (सांप), कीट (कीड़ा मकोड़ा), आदि के डस लेने पर फैलने वाले विष जेहर को बेअसर करना या उसका नुक्सान रोकना, उस से हुए दुष्प्रभावों का इलाज या उस विष से उस व्यक्ति को बचाना आदि |
अष्टांग आयुर्वेद का सातवाँ अंग है – जरा तंत्र
“जरा तंत्र” जरा कहते हैं बुढ़ापे को या उम्र के बढ़ने से आने वाली समस्याओं को और इस जरा तंत्र को रसायन तंत्र भी कहते हैं |
रसायन अर्थात बिना रोग के भी जों चिकित्सा की जा सके या जों औषधि बिना रोग के भी ली जा सके | जिस से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़े, बीमारियों से लड़ने की ताकत आये, बल बुद्धि आयु बढ़े और जवानी युवा अवस्था लम्बे समय तक बनी रहे |
अष्टांग आयुर्वेद का आठवां अंग है – वाजीकरण तंत्र
वाजीकरण तंत्र अर्थात जिनका वीर्य कमजोर है और जिनका वीर्य शुद्ध नहीं है जिनका वीर्य उत्पादन कम होता है या जिनमें मैथुन की क्षमता और संतान उत्पत्ति की काबिलियत नहीं है ऐसे सभी लोगो की चिकित्सा के विधान को वाजीकरण तंत्र कहते हैं |
ये उपरोक्त आयुर्वेद के आठ अंग हैं | जिसमें अलग अलग प्रकार के रोगों को अलग-अलग विभाग में बांटा गया है ताकि चिकित्सा करना सटीक और सरल हो सके | आयुर्वेद के सभी अंगों के लिए अलग-अलग चिकित्सक होते हैं और वे उस उस क्षेत्र के प्रवीण कुशल व मास्टर होते हैं | हालाँकि आयुर्वेद की गूढ़ विद्या लुप्त सी हो चुकी है परन्तु जों लुप्त नहीं हुई है यदि पहले उसे ही संभाल लिया जाए तो ये संभव है की आयुर्वेद से आने वाले समय पर उन सब रोगों की भी चिकित्सा संभव है इसके लिए अन्य सभी पैथियां भी हाथ खड़े कर चुकी हैं |
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नमस्कारम
Nityanandam Shree is a well known Ayurvedic and Yoga practitioner who has touched countless lives and made them healthier and more fulfilling.